माल्या ने अपने आचरण से सदन की गरिमा को ठेस पहुँचाई है | कोई कारण नहीं कि वे अब राज्य सभा के सदस्य रहें
2005 का ‘‘प्रश्न के बदले पैसा’’ घोटाला याद कीजिए जब संसद के 11 सदस्यों को, जिनमें अधिकतर भाजपा के थे, एक स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर निष्कासित कर दिया गया था, जिसमें उन्हें संसद में प्रश्न पूछने के लिए तुच्छ धनराशि स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। संप्रग सरकार के लिए व्यवहारिक दृष्टि से ये उपयुक्त था कि उन सांसदो को बाहर कर दे चूंकि उस वक्त मनमोहन सिंह सरकार स्थिर नहीं थी। नैतिक आक्रोश की प्रतिक्रिया स्वरूप दस लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सदस्य बाहर कर दिए गए | वही साहस संसद फिर कभी न जुटा पाई, जब बाद में संप्रग-1 व संप्रग-2 के शासन काल के दौरान नियमित अंतराल पर कई हज़ार करोड़ के भ्रष्टाचार के खुलासे हुए।
क्या आप सोच सकते हैं कि इन कारनामों की जाँच पड़ताल करने और निष्कासित करने का सुझाव देने की ज़िम्मेदारी किसे सौंपी गई ? पवन कुमार बंसल को, जो संप्रग-2 सरकार में रेल मंत्री थे, और जो ख़ुद अपने पद से बर्खास्त कर दिए गए थे, जब उनका एक रिश्तेदार रेलवे बोर्ड के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पदों को अयोग्य उम्मीदवारों को बेचने का दोषी पाया गया था।
इस मुद्दे को अब उठाने का कारण सीधा सा है: राज्य सभा में इस समय एक सदस्य हैं जिनके ऊपर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सात हज़ार करोड़ से ज़्यादा की देनदारी है, और ज़्यादातर बैंकों के द्वारा जिन्हें विलफ़ुल डिफाल्टर घोषित किया जा चुका है, और जिनपर कर्मचारियों, कर अधिकारियों और प्रोविडेंट फंड संगठन ने बकाये के दावे किए हुए हैं | लेकिन, वो अब भी कानून निर्माता और संसद की महत्त्वपूर्ण कमेटियों के सदस्य के रूप में बरकरार है।
राज्य सभा सांसद के रूप में उनका कार्यकाल 2016 के मध्य में समाप्त हो रहा है, लेकिन सदन में एक अपराधी के क़ानून निर्माता के रूप में होने पर भी सदन का ज़मीर नहीं जाग पाया है। जबकि इसी सदन ने उन साधारण सांसदों कें संसद में कुछ प्रश्न पूछने के ऐवज में पैसे लेने पर ज़मीन-आसमान एक कर दिया था | निःसंदेह वो एक अनैतिक कृत्य था लेकिन किसी को क्षति पहुंचाने की सीमित और न्यूनतम सार्मथ्य वाला।
25 फरवरी को इस आदमी ने 500 करोड़ रूपये की लूट की रकम डियाजियो नियंत्रित यूनाइटेड स्पिरिट्स से इकट्ठा की, वो कम्पनी जिसे उसने अपनी निजी संपत्ति के रूप में इस्तेमाल किया। डियाजियो ने उसपर ये आरोप लगाया है कि उसने इस कम्पनी से पैसों को निकालकर अपने आधिपत्य वाली व्यावसायिक इकाइयों पर ग़लत तरीके से खर्च किया। डियाजियो अब उनके साथ एक शांति समझौता किया है जिसमें 500 करोड़ के एवज़ में वो कम्पनी को छोड़ देंगे और साथ ही उन्हें अनुचित तरीके से धनराशि के इस्तेमाल के आरोपों से छुटकारा मिल जाएगा।
डियाजियो ने मूलतः अपने ही अल्पसंख्यक शेयरधारकों को नीचा दिखाया जब उसने माल्या पर बकाया सारे दावों को वापस ले लिया और उसे पाँच साल के गैर-प्रतिस्पर्धी अनुबंध के लिए भारी रकम भी अदा की। दो ही संभावनाएं हैं या तो डियाजियों ने इन दावों को केवल दबाव नीति के रूप में इस्तेमाल किया उसे बाहर निकालने के लिए, अथवा डियाजियो दोषी है कि इसने यूनाइटेड स्पिरिट्स के शेयरधारकों के हितों को साधने के लिए परिश्रमपूर्वक प्रयास नहीं किया।
कई बैंकों ने माल्या को विलफ़ुल डिफाल्टर घोषित कर दिया है और आर.बी.आई के नए मानदंडों के अनुसार, उन बोर्डों का ऋण नहीं दिए जाएंगे जिनका एक भी सदस्य विलफ़ुल डिफाल्टर होगा | अत: माल्या को, वे सब बोर्ड जिनके वो सदस्य हैं, छोड़ने पड़ेंगे | इसके अलावा कानों की पहुँच भी शायद उनसे बहुत दूर नहीं थी | यही उनके भारत छोड़ने का मुख्य कारण रहा |
यूनाइटेड स्पिरिट्स से बाहर निकाले जाने के बाद, माल्या सम्भवतः भारत से बहुत दूर ही रहेंगे। ऐसे में बैंकों के लिए ये बहुत ही दुष्कर होगा कि उसे बकाए के भुगतान के लिए विवश कर सकें।
यदि राज्य सभा द्वारा अपने ऐसे सदस्य के विरूद्व जिसने भारत, इसके करदाताओं और किंगफिशर के कर्मचारियों के साथ किए गए अपने अनैतिक आचरण द्वारा सदन की गरिमा को ठेस पहुँचाइ हो दण्डात्मक कार्यवाही करने का दृष्टांत बनता हो तो सदन को अविलंब माल्या को निष्कासित करना चाहिए | भले ही इस कार्यवाही का केवल एक सांकेतिक मूल्य ही हो और वो भी तब जब माल्या का कार्यकाल अब से कुछ महीने बाद ख़त्म हो रहा है।
यह श्री आर.जगन्नाथन के लेख का अनुवादित व संपादित संस्करण है