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हिन्दू पार्टी के रूप में अपनी मुख्य पहचान को छोड़कर भाजपा का फ़ायदा नहीं 

  • भाजपा को चाहिए कि वह बिना किसी अपराधबोध के अपनी हिन्दू पार्टी कि छवि को स्वीाकरे और हिन्दू पार्टी होते हुए एक सकारात्मक व समावेशी राजनीति का एजेंडा अपनाये

R JagannathanMar 08, 2016, 07:19 PM | Updated 07:19 PM IST
PM Narendra Modi at the Ganga aarti in Varanasi (Kevin Frayer/Getty Images) 

PM Narendra Modi at the Ganga aarti in Varanasi (Kevin Frayer/Getty Images) 


यदि भाजपा अब ऐसा पाती है कि उसने अपने धुर विरोधियों से ज़्यादा अपने समर्थकों को निराश किया है, तो ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने सफलता के मूलभूत नियम को दरकिनार कर दिया: कि आपको अपनी ताकत को ध्यान में रखकर खेलना चाहिए न कि अपनी कमज़ोरियों को। जो आप नहीं है वो होने का दिखावा करना पराजय का तयशुदा रास्ता है। जब अवधारणायें ही वास्तविकता हों, तब आपको जनता की उन अवधारणाओं को अपने खूबियों की ओर खींचनें की कोशिश में लग जाना चाहिए ना कि उन खूबियों से दूर भागने में।

अगर वीरेन्द्र सहवाग हमारे महानतम ओपनरों में से एक बने हैं तो वो इसलिए नहीं कि उनके पास टेक्स्ट-बुक की तकनीकें थी। वो महानतम इसलिए बन पाए क्योंकि वो हमेशा अपनी स्ट्रैंथ पर खेले और कभी भी दूसरा सुनील गावस्कर या गुंडप्पा विश्वनाथ बनने की कोशिश नहीं की। वीरेन्द्र सहवाग महान इसलिए हैं क्योंकि वह वीरेन्द्र सहवाग हैं। बेशक, उनकी एक बहुत बड़ी कमज़ोरी थी जोखिम भरे शॉट्स खेलना, जिसकी वजह से वो अकसर बहुत जल्दी आउट हो जाते थे, लेकिन वो अपनी कमज़ोरियों को दूर करने पर ध्यान केन्द्रित करके कभी महान नहीं बन सकते थे, वो अपनी स्ट्रैंथ पर ही खेले।

एक नई राह दिखाने वाली अपनी किताब ‘‘फर्स्ट, ब्रेक आल द रूल्स’’, में प्रबंधन गुरू मार्कस बकिंघम और कर्ट कॉफ़मैन ने बताया है कि महान प्रबंधको ने कैसे अपने कर्मचारियों की क्षमताओं के निर्माण पर काम करते हुए और उनकी कमज़ोरियो से बचने का रास्ता ढूंढते हुए उनसे अनुकूलतम परिणाम देने वाली कार्यक्षमता को विकसित किया। नियति से लड़ने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की, उसके बजाए उन्होंने उनकी सहायता की अपनी जन्मजात प्रतिभा पर ध्यान केन्द्रित करने में।

बात जब भी कमज़ोरियों की आयी, या तो उन्होंने उसे ढकने के रास्ते खोजने की कोशिश की या उन कमज़ोरियो को समायोजित करने की। कमज़ोरियां हटाई नहीं जा सकती। कमज़ोरी किसी भी मानवचरित्र या मानव निर्मित संस्थान का उतना ही मूलभूत अंग है जितना कि उसकी ताकत।

भाजपा को यही बात समझना नितांत आवश्यक है। वह वो नहीं हो सकती, जो वो नहीं है— एक परम्परागत भारतीय साँचे में ढली सेक्यूलर पार्टी। यदि वो ऐसा होने की कोशिश भी करती है तो अपने विरोधियों द्वारा बहुत जल्द वो सांप्रदायिक दर्जे में पुनः स्थापित कर दी जाएगी। बीजेपी एक हिन्दू पार्टी है, और यही उसका उपयुक्त उद्गम है। भाजपा एक हिंदु पार्टी है , यह सीना ठोंककर दावा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये काम करने के लिए उसके धुर विरोधी जो हैं।

बीजेपी को अपनी इस हिन्दू वादी छवि को अपनी कमज़ोरी के बजाए अपनी ताक़त के रूप में देखना चाहिए। उसके सामने चुनौती है कि वो ये साबित करे कि उसका मूलभूत हिन्दू-समर्थक स्वभाव उसे अल्पसंख्यकों के हितों का शत्रु नहीं बनाता। भाजपा की विश्वसनीयता इससे कदापि नहीं बढ़ने वाली कि वो सेक्यूलर पार्टी दिखने के लिए चंद मुस्लिम चेहरों को जनता पर थोप दे। इस प्रपंच से जनता को बरगलाया नहीं जा सकता।

यदि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पार्टी के मूलभूत स्वभाव का स्पष्टीकरण देना हो (या ये स्पष्ट करना हो कि पार्टी का मकसद क्या होना चाहिए) तो उन्हें इस प्रकार का वक्तव्य देना चाहिए:

‘‘हाँ, बीजेपी हिन्दू पार्टी मानी जाती है और हम इस परिभाषा को स्वीकार करते हैं। हमारे लिए ध्यान देने योग्य बात है दूसरे समुदायों के अधिकारों, हितों का अतिक्रमण किए बग़ैर हिन्दू हितों की रक्षा करना। ये परिभाषा हमें पंथिक या साम्प्रदायिक नहीं बनाती वैसे ही जैसे कि इण्डियन मुस्लिम लीग या मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन को पंथिक नहीं बनाती।

“हमारी परिभाषा का स्रोत ये सर्वविदित तथ्य है कि भारत की जनसंख्या में 80 प्रतिशत हिन्दू हैं, और यदि आप 80 प्रतिशत के हितों की रक्षा नहीं कर सकते तो आप शेष 20 प्रतिशत की भी रक्षा नहीं कर सकते। हमें इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि इस विश्व में जिसमें बहुत सारे देश आधिकारिक रूप से ईसाई, मुस्लिम और यहाँ तक कि बौद्य धर्मावलंबी हैं, वहाँ हिंदुओं का एकमात्र घर भारत ही है। यदि भारत में भी हिन्दु अपने हितों की रक्षा न कर सकें तो उनके लिए और कोई स्थान नहीं बचता जहाँ वो जा सकें। यदि भारत में भी हिन्दु ख़ुद को हाशिये पर महसूस करे तो ये एक वैश्विक त्रासदी होगी। 1947 के बाद का अनुभव ये साबित करता है कि हमारे पड़ोस में अत्याचार का शिकार हुए हिन्दूओं की अंतिम शरणास्थली भारत ही था। इसलिए हमें भारत में हिन्दू हितों की रक्षा के लिए किसी आवरण की ज़रूरत नहीं।”

“इसका ये मतलब नहीं कि भाजपा अल्पसंख्यकों के अधिकारों और हितों को धीरे-धीरे कम कर देगी, लेकिन हम ये मानते हैं कि मौजूदा दौर में हम उनके हितों का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते।”

“अल्पसंख्यक समुदाय के प्रगतिशील लोगों के लिए भाजपा के द्वार खुले हैं। भाजपा मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक दलों को सुरक्षित महसूस कराएगी और आर्थिक प्रगति करने में उनका सहयोग करेगी।”

“हमारा नारा है ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ अर्थात हम गरीबों का धर्म देखे बिना उनकी हर सम्भव मदद करेंगे। भाजपा जातिगत भेदभाव एवं लिंगभेद के शिकार लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करवाने को भी प्रतिबद्ध है।”

“हिन्दू पार्टी होने का मतलब है उन सभी लोगों के लिए काम करना जिन्हें हम हिन्दू मानते है, और इनमें दलित भी हैं। दरअसल, अब से हमारी यही प्राथमिकता है और हमारा यह विश्वास भी है कि लम्बे समय से चली आ रही हिंदु समाज की इन विसंगतियों को दूर किए बिना हम सही मायने में हिंदु पार्टी नहीं हो सकते।”

आगामी वर्षों में भाजपा की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए यही मार्गदर्शिका होनी चाहिए ।

भाजपा इस अवधारणा से दूर नहीं भाग सकती कि वो एक हिन्दू पार्टी है। कोई भी हिन्दू भाजपा को वोट देने से महज़ इसलिए मना नहीं कर देगा कि उस पर एक हिन्दू पार्टी होने का आरोप है, जैसे कि कोई भी दलित, मायावती की दलित के रूप में उत्पत्ति को उन्हें वोट न देने के कारण के रूप में नहीं देखेगा।

हिन्दू पार्टी के रूप में अपने स्थान को स्वीकार करने से भाजपा अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काम करते हुए, बिना किसी अपराधबोध के, हिंदुओं के हितों के लिए भी काम कर पाएगी | हिन्दू हितों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली बीजेपी तब विश्वसनीय होगी, और तब उसके द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए जो कुछ भी किया जाएगा, उसे बहुसंख्यकों का भी समर्थन हासिल होगा। अल्पसंख्यकों के लिए किया गया ऐसा कोई भी कार्य दीर्घ काल तक स्थायी होगा। एक सेक्यूलर पार्टी द्वारा मुसलमानों के लिए किये गये किसी भी काम पर बहुसंख्यकों द्वारा आपत्ति जताए जाने की संभावना हमेशा बनी रहेगी।

अपनी हिंदुवादी छवि को स्वीकार करने का बीजेपी को एक और फायदा होगा: जब वो अपनी हिंदुत्ववादी छवि नकारती है तो हाशिए पर रहने वाले हिंदुवादी तत्व हिंदु समाज का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं। क्या भाजपा चाहती है कि साक्षी महाराज और विभिन्न साध्वियां, जिनसे अधिकांश हिंदू किनारा करते हैं, वो हिंदुओं के मुख्य प्रतिनिधि बन जाएँ ? अतः यदि भाजपा ने अपनी मूल पहचान को नकारा, तो हाशिए पर रहने वाले ये तत्व अग्रणीय स्थिति में आ जाएंगे।

संक्षिप्त में- अपनी मूल पहचान, हिंदु वादी छवि से दूर भागकर भाजपा खोएगी सब पाएगी कुछ भी नहीं।

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