Commentary
आंध्र ज्योति: धार्मिक रूपांतरण
Manohar Seetharam
Nov 25, 2011, 04:43 AM | Updated Apr 29, 2016, 02:46 PM IST
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आंध्र ज्योति, आंध्र प्रदेश के तीन सबसे ज्यादा प्रचलित अख़बारों में से एक हैं. एस महीने के दस तारीख से सोलह तारीख तक हर रोज़ इस अख़बार ने आंध्र प्रदेश में चले आ रहे धर्मान्तर के विषय पर लेख प्रकाशित किये. यहाँ हम तेलुगु मैं प्रकाशित उन लेखों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं.
भारत मैं 18 संगठन धर्मान्तर के कामों का नेतृत्व कर रहे हैं, इनके साथ 45 अन्य सहयोगी संगठन भी धर्मान्तर के कामों में शामिल हैं. धर्मान्तरित लोगों की संख्या में आंध्र प्रदेश (आ.प्र), भारत के अन्य सभी राज्यों से आगे हैं. यह काम मुख्यतः कृष्ण, गुंटूर, प्रकाशम्, गोदावरी, मेदक, रंगारेड्डी, आदिलाबाद, करीमनगर एवं कदापा जिलों में केन्द्रित हैं. अनेक सूत्रों से प्राप्त रिपोर्ट से यह प्रतीत होता हैं की एन जिलों की करीब 10 फीसदी आबादी अब तक धर्मंतारों का शिकार हो चुकी हैं. संगठनों ने धर्मान्तर के काम के लिए पूरे राज्य को आपस मैं बाँट लिया हैं. एन बड़े संगठनों के अलावा कई अनेक छोटे मोटे संगठन भी एस काम अपना योगदान दे रहे हैं.
ऑपरेशन - AD2000
भारत में 100 करोड़ से भी ज्यादा लोग बसते हैं. एस आबादी का एक सबसे बड़ा हिस्सा अभी तक ईसाई धर्म के बाहर हैं. मज़हबी विविधता से पूर्ण आबादी का यह हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय मिशनरियों का मुख्य लक्ष्य हैं. एक विशिष्ट परियोजना – ऑपरेशन – AD2000, के अंतर्गत भारत में सक्रिय सारे मिशनरियों के बीच तालमेल बढ़ने का काम शुरू किया गया. 1995 में आयोजित एक सम्मलेन (जिसमे अनेक ईसाई धर्मगुरु उपस्थित थे) में भारत में होनेवालें धर्मान्तारों लिए आवश्यक धनराशि जुटाने के काम को प्रारंभ किया गया. एस परियोजना का अन्य नाम – ‘ जोशुआ प्रोजेक्ट ‘ भी हैं.
एस परियोजना के तीन मुख्या भाग हैं - प्लग, प्रिम और नैस.
सबसे पहले चरण -‘प्लग’ के अंतर्गत, एस वृत्ति के विशेषग्य स्वयं को समाज के निचले समुदायों से जोड़ने का काम करते हैं. एन समूहों से जुड़ने के बाद यह विशेषग्य प्रत्येक समुदाय के धर्मान्तर के लिए उपयोगी नीतियों पर विचार करना शुरू करते हैं. अगला चरण हैं – ‘प्रिम’. ‘प्रिम’ के अंतर्गत स्थलीय भाषा और रीति-रिवाजों के माध्यम से धार्मिक सम्मेलनों और उपदेशों का आयोजन किया जाता हैं. पहले चरण में सोचे गए नीतियों पर पुनर्विचार कर उन्हें और प्रभावी रूप प्रदान किया जाता हैं. अंतिम चरण -‘नैस’ के दौर में वास्तविक धर्मान्तर कि प्रक्रिया तो धार्मिक संस्कारों के साथ संपन्न किया जाता हैं.
भारत और भारतीय समाज के बारे मैं इन संगठनों के पास उपलब्ध विषय और रेसेअर्च के बारे मैं कहा जाता हैं कि इनकी गुणवत्ता से हमारे ख़ुफ़िया अजेंसिएस भी चकित हैं. यह माना जाता हैं कि भारत में ‘ जोशुआ प्रोजेक्ट’ का पहला चरण समाप्त हो चूका हैं.
आंध्र प्रदेश के तटवर्ती इलाखों में कामयाबी हासिल करने के बाद अब यह संगठन धीरे धीरे कृष्ण और गोदावरी डेल्टा में सक्रीय हो रहे हैं. धर्मान्तर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिशनरियां परोपकार (चैरिटी) का भरपूर सहारा लेती हैं. मध्य प्रदेश, गुजरात, उडीसा, तमिल नाडू, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड में धर्मान्तोरों के खिलाफ क़ानून पारित किया हैं. आज़ादी से पूर्व भी अनेक राज्य जैसे – रायगड और उदयपुर ने धर्मंतारों के खिलाफ क़ानून पारित किया था. आज़ादी के पश्चात् भी धर्मान्तर के खिलाफ क़ानून बनाने के कई प्रयास किये गए. दुःख कि बात यह हैं कि बहुमत के अभाव में यह प्रस्ताव संसद में पारित नहीं हो सके. यदि हम आंकड़ों को देखे तो पूरे विश्व में 22000 अख़बार, 1890 रेडियो और टी.वी स्टेशन का नियंत्रण सीधे सीधे गिरिजाघरों के पास हैं.
क़ानून, अपराध और सजा
भारतीय कानून के तेहत बल व दबाव के माध्यम से किये जाने वाले धर्मान्तर एक अपराध हैं. यदि आरोपी दोषी पाया गया तो उसे बंधन और जुर्माने से दण्डित करने के प्रावधान क़ानून में उपस्थित हैं. उड़ीसा और मध्य प्रदेश के क़ानून के तेहत बच्चों, महिलाओं और अनुसूचित जाती और जनजातियों के धर्मान्तर के सम्बन्ध में आरोपी को दुगनी सजा देने का प्रावधान भी मौजूद हैं. अन्य धर्मों के धर्म क्षेत्रों में धर्मान्तर के कामों पर संपूर्णतः प्रतिबन्ध डाले गए हैं.
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Author is an under-graduate from IIT Madras with more than a decade of experience in Indian R&D centres of Global MNCs.
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